श्लोक : नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ॥ (२३)
अर्थ : इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते ,इसको आग नहीं जला सकती , इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सूखा सकता ॥
अच्छेद्यो $यमदाह्यो$यमक्लेद्यो$शोष्य एव च ।
नित्य: सर्व गत : स्थाणुरचलो$यं सनातन: ॥ (२४)
अर्थ : क्योकि यह आत्मा अच्छेद्य है , यह आत्मा अदाह्य है , अक्लेद्य और निसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य , सर्व व्यापी , अचल , स्थिर रहने वाला और सनातन है ॥
श्लोक : अव्यक्तो $यम्चिंत्यो$$यमविकार्यो $यमुच्यते ।
तस्मादेवं विदितवैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥ (२५)
अर्थ : यह आत्मा अव्यक्त है , यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकार रहित कहा जाता है । इससे हे अर्जुन इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जान कर तू शोक करने योग्य नहीं है अर्थात तुझे शोक करना उचित नहही है