व्याख्या : भरत वंशियों अर्थात पांडवों एवं कौरवों में एक पक्ष राज छोड़ना नहीं चाहता है और दूसरा पक्ष एन केन प्रकारेण युद्ध न हो और शांति से मामला हल हो जाये अर्थात वार्तालाप से मामला सुलझ जाए तथा युद्ध टल जाए और आपसी समझौता कारगर हो ऐसी मान्यता वाले पांडव जन शांति सुलह के प्रयासों में असफल हो , जब युद्ध भूमि में आये तब परम पराक्रमी अर्जुन ने दोनों सेनाओं के बीच रथ को ले जाने की बात कही ताकि वह मध्यम मार्ग में खड़ा हो एवं अपने प्रति द्वंदियों को देख सके की इस घोर युद्ध में अन्याय का साथ देने उसके कितने अपने और पराये आये है अर्जुन के सोच विचार की व्यापकता भी उतनी ही है जितना की वह स्वयं में महान योद्धा है वह श्री कृष्ण का विनम्र भक्त भी है वह काल जयी योद्धा द्वेष को लेकर समरांगन में नहीं उतरा अपितु उन अपनो का चेहरा देखने युद्ध के मध्य में आया जो स्वार्थ के वशी भूत होकर अकारण एक दूसरे का रक्त बहाने आये हैं I सम्प्रति उसके मन में अपनो के प्रति चाहत थी जो विशुद्ध मानवीय थी तथापि युद्ध समय की मांग एवं परिस्थिति जन्य था I (यह व्याख्या है श्लोक २१ एवं २२ की )
योत्स्यमानानवेक्षेहम य एतेsत्र समागता :I
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियाचिकिर्शव II २३
अर्थ : दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो जो ये राजा लोग इस सेना में आये है इनयुद्ध करने वालों को मैं देखूँगा
व्याख्या : अर्जुन ने भगवान वासुदेव से कहा मुझे उन लोगों के चेहरे देखने दी जिए जो दुर्बुद्धि दुर्योधन का पक्ष लेने समरांगन में उतारे है I यह वक्तव्य अर्जुन के मन में किसी द्विविधा ,भय या सकोच के कारण नहीं और न ही युद्ध पूर्व किसी योद्धा से छल पूर्वक अपने पक्ष में करने का रहा है बल्कि उस महान धनुर्धर ने युद्ध के मद्ध्य में आकर उन योद्धाओं के चहरे देखने चाहे जो संभवतयुद्धपूर्व अर्जुन के चाहने वाले रहे हों या पांडवों के प्रति स्नेह का भाव रखने या सहानुभूति रखने वाले हों तथापि किसी कारण वश दुर्बुद्धि ,दुर्मति दुर्योधन का साथ दे रहे हों अर्जुन की ऐसी युद्ध व्यंजना रण नीति के तहत थी ताकि अपने विरुद्ध युद्ध के लिए आने वाले योद्धाओं का मनो वैज्ञानिक परीक्षण कर सके और युद्ध को अपने अनुकूल परिणति दे सके युद्ध जब एक परिवार के मद्ध्य तय हो जाये तब धर्म संकट की स्थिति आती है तब ऐसा भी लग सकता है की क्या इनसे भी युद्ध करना है मुझे ? क्या ये भी लड़ेंगे मुझसे आखिर यह युद्ध था महत्वाकांक्षाओं का ,हठ, का व्यामोह का ,अधर्मसे राज्य हड़पने का और दो भाईओं की संतति के बीच का I ऐसे में महान विचार वान परम कृष्ण भक्त अर्जुन का उन लोगों को देखने का मन में भाव आना स्वाभाविक था
Sunday, July 11, 2010
Friday, July 9, 2010
shri madbhagvadgita pratham addyaay ...aage..
अथ व्यवस्थितान द्रस्त्वा धार्तरास्त्रान कपिद्ध्वज : I
प्रवृत्ते शश्त्र सम्पाते धनुरुद्यम्य पांडव : II २०
हृषिकेशम तदा वाक्यमिदमाह महीपते I (२१ अर्धांश पूर्व )
अर्थ : हे राजन इसके बाद कपिद्ध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँध कर डटे हुए ध्रतराष्ट्र -सम्बन्धियों को देख कर ,उस शश्त्र चलाने की तयारी के समय धनुष उठाकर हृषिकेश श्रीकृष्ण महाराज से ये वचन कहा I
अर्जुन उवाच
सेनयोरुभओर्मद्ध्ये रथं स्थापय मेंsअच्युत II (२१ अर्धांश उत्तर )
अर्थ :हे अच्युत मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये
यावाद्देत्ता न्निरीक्षेहम योद्धुकामानावास्थितन I
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रंसमुद्य्म्मे II ( २२ )
अर्थ :और जब तक क़ि मैयुद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं की इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन किन के साथ युद्ध करना योग्य है I तब तक उसे खड़ा रखिये I
प्रवृत्ते शश्त्र सम्पाते धनुरुद्यम्य पांडव : II २०
हृषिकेशम तदा वाक्यमिदमाह महीपते I (२१ अर्धांश पूर्व )
अर्थ : हे राजन इसके बाद कपिद्ध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँध कर डटे हुए ध्रतराष्ट्र -सम्बन्धियों को देख कर ,उस शश्त्र चलाने की तयारी के समय धनुष उठाकर हृषिकेश श्रीकृष्ण महाराज से ये वचन कहा I
अर्जुन उवाच
सेनयोरुभओर्मद्ध्ये रथं स्थापय मेंsअच्युत II (२१ अर्धांश उत्तर )
अर्थ :हे अच्युत मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये
यावाद्देत्ता न्निरीक्षेहम योद्धुकामानावास्थितन I
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रंसमुद्य्म्मे II ( २२ )
अर्थ :और जब तक क़ि मैयुद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं की इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन किन के साथ युद्ध करना योग्य है I तब तक उसे खड़ा रखिये I
Wednesday, July 7, 2010
SHRI MADBHAGVAD GITA PRATHAM ADDHYAY..AAGE
स घोषो धार्त्रराश्त्रानाम हृदयानि व्यदारयत I
नभश्च प्रथिवीम चैव तुमुलो व्यनुनादयन II १९
अर्थ : और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्ष वालो के ह्रदय विदीर्ण कर दिए I
व्याख्या : उपर्युक्त श्लोक १२ से १९ तक
ऊपर लिखे श्लोको में शंखनाद एवं अन्य रण भेरियों का उच्च नाद युद्ध भूमि में गुन्जाय मान होता है पितामह भीष्म ने दुर्योधन के मन में यह भाव पैदा करने के लिए कि उन्होंने ने युद्ध की पूरी तयारी के साथ कमान संभाल ली है एवं सेनापति के रूप में कुरु सेना की ओर से एक तरह से युद्ध भूमि में स्वयं सेनापति के रूप में उपस्थति का उल्लेख कियाI उसी समय कुरुसेना की ओर से बहुत सारे योद्धाओं के तुमुल तुरही सिंगी आदि उच्च नाद उत्पन्न करने वाले बाजे बज उठे तत्पश्चात अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर अर्जुन एवं सारथी के रूप में श्री कृष्ण ने अपने अपने शंख बजाये एवं युधिष्ठिर समेत समस्त पांडवों ने शख बजाकर पितामह के सिंह नाद का समवेत स्वर से शंख नाद के तीव्र घोष द्वारा प्रति उत्तर दिया उसके पश्चात पांडु सेना के सबसे जाने माने योद्धाओं ने भी शंख ध्वनि की Iयहाँ द्रस्तव्य है की पांडु सेना क़ी समवेत शंख ध्वनि कौरवों के ह्रदय को दहलाने का कारण बनी जबकि भीष्म का शंखनाद मात्र दुर्योधन के मन में पितामह द्वारा युद्ध करने की आशा का संचार उत्पन्न करने का कारण मात्र बना I
यहाँ शंख के नामों का उपरुक्त श्लोकों में केवल मधुसूदन भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांच पांडवों का नाम था शेष किसी योद्धा के द्वारा बजाये गए शंख का नाम उल्लेख में नहीं आया है I
नभश्च प्रथिवीम चैव तुमुलो व्यनुनादयन II १९
अर्थ : और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्ष वालो के ह्रदय विदीर्ण कर दिए I
व्याख्या : उपर्युक्त श्लोक १२ से १९ तक
ऊपर लिखे श्लोको में शंखनाद एवं अन्य रण भेरियों का उच्च नाद युद्ध भूमि में गुन्जाय मान होता है पितामह भीष्म ने दुर्योधन के मन में यह भाव पैदा करने के लिए कि उन्होंने ने युद्ध की पूरी तयारी के साथ कमान संभाल ली है एवं सेनापति के रूप में कुरु सेना की ओर से एक तरह से युद्ध भूमि में स्वयं सेनापति के रूप में उपस्थति का उल्लेख कियाI उसी समय कुरुसेना की ओर से बहुत सारे योद्धाओं के तुमुल तुरही सिंगी आदि उच्च नाद उत्पन्न करने वाले बाजे बज उठे तत्पश्चात अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर अर्जुन एवं सारथी के रूप में श्री कृष्ण ने अपने अपने शंख बजाये एवं युधिष्ठिर समेत समस्त पांडवों ने शख बजाकर पितामह के सिंह नाद का समवेत स्वर से शंख नाद के तीव्र घोष द्वारा प्रति उत्तर दिया उसके पश्चात पांडु सेना के सबसे जाने माने योद्धाओं ने भी शंख ध्वनि की Iयहाँ द्रस्तव्य है की पांडु सेना क़ी समवेत शंख ध्वनि कौरवों के ह्रदय को दहलाने का कारण बनी जबकि भीष्म का शंखनाद मात्र दुर्योधन के मन में पितामह द्वारा युद्ध करने की आशा का संचार उत्पन्न करने का कारण मात्र बना I
यहाँ शंख के नामों का उपरुक्त श्लोकों में केवल मधुसूदन भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांच पांडवों का नाम था शेष किसी योद्धा के द्वारा बजाये गए शंख का नाम उल्लेख में नहीं आया है I
shri madbhagvadgita pratham addhyay aage ...
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश : प्रथिवीपते I
सौभद्रश्च महाबाहु : शंखान्दध्मु : प्रथक प्रथक II १८
अर्थ : श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखंडी एवं ध्रिस्त्द्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकी ,राजा द्रुपद और द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु इन सभी ने हे राजन सब और से अलग अलग शंख बजाये
यह अर्थ श्लोक १७ और १८ दोनों का सम्मिलित रूप से है
सौभद्रश्च महाबाहु : शंखान्दध्मु : प्रथक प्रथक II १८
अर्थ : श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखंडी एवं ध्रिस्त्द्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकी ,राजा द्रुपद और द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु इन सभी ने हे राजन सब और से अलग अलग शंख बजाये
यह अर्थ श्लोक १७ और १८ दोनों का सम्मिलित रूप से है
Tuesday, July 6, 2010
shri madbhagvadgita pratham addhyay....aage..
शंख नादतस्य संजनयन हर्ष कुरु वृद्ध पितामह :I
सिंह नादं विनिद्द्यौच्चे शंखं दह्मौ प्रतापवान II १२
अर्थ :कौरवों मेसबसे प्रतापी वृद्ध पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के ह्रदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरज कर शंख बजाया
तत : शंखाश्च भेर्यस्च पणवानक गोमुखा I
सह्सैवाभ्य हन्यंत स शब्दस्तुमुलोsभवत II १३
अर्थ : इसके पश्चात शंख और नगारे तथा ढोल मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ I
तत : स्वेतेर्हयेर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ I
माधव : पान्दवास्चैव दिव्यौ शन्खौ प्रदध्मतु II १४
अर्थ : इसके अनंतर सफ़ेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये I
पान्चजन्यम हृषीकेशो देवदत्तं धनजय :I
पौन्द्रम दध्मौ महाशंखभीम कर्म वृकोदर :II १५
अर्थ : श्रीकृष्ण महाराज ने पांचजन्य नमक अर्जुन ने देवदत्त नमक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौन्द्र नमक
महा शंखबजाया
अनत विजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिस्ठिर :I
नकुल : सहदेवश्च सुघोषमणि पुश्पकौ II १६
अर्थ : कुंती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नमक शंख बजाये
काश्यश्च परमेस्वास : शिखंडी च महारथ : I
ध्रिस्त्द्युम्नो विराटश्च सात्य्किश्च्पराजिता :II १७
सिंह नादं विनिद्द्यौच्चे शंखं दह्मौ प्रतापवान II १२
अर्थ :कौरवों मेसबसे प्रतापी वृद्ध पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के ह्रदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरज कर शंख बजाया
तत : शंखाश्च भेर्यस्च पणवानक गोमुखा I
सह्सैवाभ्य हन्यंत स शब्दस्तुमुलोsभवत II १३
अर्थ : इसके पश्चात शंख और नगारे तथा ढोल मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ I
तत : स्वेतेर्हयेर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ I
माधव : पान्दवास्चैव दिव्यौ शन्खौ प्रदध्मतु II १४
अर्थ : इसके अनंतर सफ़ेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये I
पान्चजन्यम हृषीकेशो देवदत्तं धनजय :I
पौन्द्रम दध्मौ महाशंखभीम कर्म वृकोदर :II १५
अर्थ : श्रीकृष्ण महाराज ने पांचजन्य नमक अर्जुन ने देवदत्त नमक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौन्द्र नमक
महा शंखबजाया
अनत विजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिस्ठिर :I
नकुल : सहदेवश्च सुघोषमणि पुश्पकौ II १६
अर्थ : कुंती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नमक शंख बजाये
काश्यश्च परमेस्वास : शिखंडी च महारथ : I
ध्रिस्त्द्युम्नो विराटश्च सात्य्किश्च्पराजिता :II १७
Monday, July 5, 2010
shri madbhagvad gita addhyay pratham...aage..
अयनेसु च सर्वेषु यथा भागमवस्थिता : I
भीस्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त : सर्व एव हि II ११
अर्थ : इसलिए सब मोर्चों पर सब अपनी अपनी जगह स्थित रहते हुए आपलोग सभी निस्संदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें I
व्याख्या :
आचार्य द्रोण पर पूर्ण विश्वाश व्यक्त करते हुए एवं उन्हें तरह तरह से मानसिक स्तर से पूर्ण रूपेण कौरुओं के पक्ष में करते हुए तथा युद्ध हेतु उकसाते हुए दुर्योधन पितामह भीष्म की प्रशंसा करता है एवं उनमे पूर्ण विश्वास व्यक्त करता है दुर्योधन सोचता है की कहीं अन्य धुरंधर योद्धा जो युद्ध में दुर्योद्धन के लिए जीवन की इक्षा का त्याग करके आये हैं उन्हें कहीं ऐसा न लगे की युव राज केवल आचार्य द्रोण एवं पितामह भीष्म की ही शौर्य गाथा गा रहा है इस भ्रम को दूर करने हेतु उसने सभी योद्धाओं से कहा की आप सभी ओर से पितामह भीष्म की ही रक्षा करें अर्थात पितामह अब वृद्ध हो चुके हैं इस तरह से सभी योद्धाओं से पितामह की रक्षा का निवेदन किया यह कूट नैतिक सन्देश दुर्योधन की वाकचातुरी का परिचायक है कोई भी राजा हो युवराज हो या मंत्री जब तक वह वाणी के कूटनैतिक प्रयोग में सक्षम नहीं होता तब तक उस पद का अधिकारी नहीं हो सकता हालां की कूट नीति में निपुण होना राजा होने केलिए आवश्यक बहुत सारे गुणों में से एकगुण होता है तथापि यह गुण राजा के लिए आवश्यक अंग है हालाँकि दुर्योधन कुरुवंश में सबसे बड़ा होने पर भी एवं कूट नैतिक वार्ता का धनी होने के बावजूद राजा होने केलिए आवश्यक अन्य बहुत सारे गुणों से युक्त नहीं था राजा को राज्य के सफल एवं कल्याण करी सञ्चालन हेतु कूट नीति का सहारा लेना आवश्यक होता है किन्तु दुर्योधन मात्र अपने निजी एवं वैयक्तिक लाभ के कारण कूट निति का सहारा लेता है I
भीस्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त : सर्व एव हि II ११
अर्थ : इसलिए सब मोर्चों पर सब अपनी अपनी जगह स्थित रहते हुए आपलोग सभी निस्संदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें I
व्याख्या :
आचार्य द्रोण पर पूर्ण विश्वाश व्यक्त करते हुए एवं उन्हें तरह तरह से मानसिक स्तर से पूर्ण रूपेण कौरुओं के पक्ष में करते हुए तथा युद्ध हेतु उकसाते हुए दुर्योधन पितामह भीष्म की प्रशंसा करता है एवं उनमे पूर्ण विश्वास व्यक्त करता है दुर्योधन सोचता है की कहीं अन्य धुरंधर योद्धा जो युद्ध में दुर्योद्धन के लिए जीवन की इक्षा का त्याग करके आये हैं उन्हें कहीं ऐसा न लगे की युव राज केवल आचार्य द्रोण एवं पितामह भीष्म की ही शौर्य गाथा गा रहा है इस भ्रम को दूर करने हेतु उसने सभी योद्धाओं से कहा की आप सभी ओर से पितामह भीष्म की ही रक्षा करें अर्थात पितामह अब वृद्ध हो चुके हैं इस तरह से सभी योद्धाओं से पितामह की रक्षा का निवेदन किया यह कूट नैतिक सन्देश दुर्योधन की वाकचातुरी का परिचायक है कोई भी राजा हो युवराज हो या मंत्री जब तक वह वाणी के कूटनैतिक प्रयोग में सक्षम नहीं होता तब तक उस पद का अधिकारी नहीं हो सकता हालां की कूट नीति में निपुण होना राजा होने केलिए आवश्यक बहुत सारे गुणों में से एकगुण होता है तथापि यह गुण राजा के लिए आवश्यक अंग है हालाँकि दुर्योधन कुरुवंश में सबसे बड़ा होने पर भी एवं कूट नैतिक वार्ता का धनी होने के बावजूद राजा होने केलिए आवश्यक अन्य बहुत सारे गुणों से युक्त नहीं था राजा को राज्य के सफल एवं कल्याण करी सञ्चालन हेतु कूट नीति का सहारा लेना आवश्यक होता है किन्तु दुर्योधन मात्र अपने निजी एवं वैयक्तिक लाभ के कारण कूट निति का सहारा लेता है I
Saturday, July 3, 2010
shri madbhagvad gita prtham addhyay ...aage
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीस्माभिरक्षितम I
पर्याप्तं त्विद्मेसाम बलम भीमाभिरक्षितम II १०
अर्थ : हमारी शक्ति अपक्रिमेय है और हम सब पितामह भीष्म द्वारा रक्षित हैं जबकि पांडवों की शक्ति भली भांति संरक्षित होकर भी सीमित है
व्याख्या :स्वाभाविक रूप से अपने को बली मानने वाला अपनी सेना की विशालता का वर्णन करने वाला ,पितामह की युद्ध कला में निपुणता तथा एवं उनके बल पर पूर्ण विश्वास करने वाला दुर्योधन पांडवों की सेना को कम तर आंक रहा है और उसे भीम द्वारा संरक्षित बता रहा है I पितामह भीष्म और भीम के बल के अंतर को आचार्य के संज्ञान में ला रहा है दुर्योधन अभिमानी है बली है तथा पराक्रमी है वह कूटनैतिक संवाद का महारथी है वह जानता है की वृद्ध आचार्य की मानसिक शक्ति कहीं क्म न हो जाये इसीलिए वह कुरु सेना को विशाल एवं अति शक्ति संपन्न बता रहा है वह कुरु सेना को दुर्भेद्य बता रहा है
पर्याप्तं त्विद्मेसाम बलम भीमाभिरक्षितम II १०
अर्थ : हमारी शक्ति अपक्रिमेय है और हम सब पितामह भीष्म द्वारा रक्षित हैं जबकि पांडवों की शक्ति भली भांति संरक्षित होकर भी सीमित है
व्याख्या :स्वाभाविक रूप से अपने को बली मानने वाला अपनी सेना की विशालता का वर्णन करने वाला ,पितामह की युद्ध कला में निपुणता तथा एवं उनके बल पर पूर्ण विश्वास करने वाला दुर्योधन पांडवों की सेना को कम तर आंक रहा है और उसे भीम द्वारा संरक्षित बता रहा है I पितामह भीष्म और भीम के बल के अंतर को आचार्य के संज्ञान में ला रहा है दुर्योधन अभिमानी है बली है तथा पराक्रमी है वह कूटनैतिक संवाद का महारथी है वह जानता है की वृद्ध आचार्य की मानसिक शक्ति कहीं क्म न हो जाये इसीलिए वह कुरु सेना को विशाल एवं अति शक्ति संपन्न बता रहा है वह कुरु सेना को दुर्भेद्य बता रहा है
Friday, July 2, 2010
shri mad bhagvad gita pratham addhyay ...aage...
श्लोक ; अन्ये च बहवा शूरा मदर्थे त्यक्त जीविता I
नाना शस्त्र प्र्हरना सर्वे युद्ध विशारदा II९
अर्थ : ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में निपुण हैं I
व्याख्या : दुर्योधन के पक्ष में जयद्रथ कृतवर्मा शल्य आदि बहुत सारे योद्धा हैं जो युद्ध में अपने प्राणों की बाजी लगा कर युद्ध करने की इक्षा को लेकर आये हैं यद्यपि वे सारे योद्धा पापी एवं दुराचारी हैं इसलिए कुरुक्षेत्र में उनका मृत्यु के मुख में जाना अवश्यम्भावी है तथापि वे सारे के सारे योद्धा दुर्योधन के मित्र भी हैं यही कारण है की उन सभी का समवेत बल दुर्योधन के बल को बढ़ाये रखता है युद्ध में प्राणों की परवाह न करने वाले योद्धाओं के विषय में दुर्योधन अपने सेना पति को बता कर उनके मन में उत्साह की वृद्धि करता है इस तरह की वार्ता दुर्योधन के कूटनैतिक सूझ बूझ का परिचायक है
नाना शस्त्र प्र्हरना सर्वे युद्ध विशारदा II९
अर्थ : ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में निपुण हैं I
व्याख्या : दुर्योधन के पक्ष में जयद्रथ कृतवर्मा शल्य आदि बहुत सारे योद्धा हैं जो युद्ध में अपने प्राणों की बाजी लगा कर युद्ध करने की इक्षा को लेकर आये हैं यद्यपि वे सारे योद्धा पापी एवं दुराचारी हैं इसलिए कुरुक्षेत्र में उनका मृत्यु के मुख में जाना अवश्यम्भावी है तथापि वे सारे के सारे योद्धा दुर्योधन के मित्र भी हैं यही कारण है की उन सभी का समवेत बल दुर्योधन के बल को बढ़ाये रखता है युद्ध में प्राणों की परवाह न करने वाले योद्धाओं के विषय में दुर्योधन अपने सेना पति को बता कर उनके मन में उत्साह की वृद्धि करता है इस तरह की वार्ता दुर्योधन के कूटनैतिक सूझ बूझ का परिचायक है
Thursday, July 1, 2010
shrimad bhagvad gita pratham addhyay....aage.....
भवान भीश्मश्च कर्णश्च क्रपश्च समितिंजय : I
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौम्दात्तिश्ताथैव च II
अर्थ : द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्राम जयी कृपाचार्य एवं वैसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं .
व्याख्या : पितामह भीष्म देय्वृत गंगा पुत्र भीष्म राजरिशी कोटि के हैं एवं भगवान परशुराम से धनुर्वेद की शिक्ष प्राप्त की है जो अमोघ एवं अचूक युद्ध विद्या में अग्रणी माने जाते हैं आचार्य द्रोण तो हैं ही धनुर्वेद के आचार्य महाबली कर्ण भी भगवान परशुराम के शिष्य हैं कृप आचार्य द्रोण का साला है अश्वत्थामा स्वयं महा योद्धा है विकर्ण ध्रतराष्ट्र का तीसरा पुत्र है सौमदत्त वहिको के राजासोमदत्त का पुत्र है दुर्योधन ने जानबूझ कर उन्हें योद्धाओं के बारे में नाम लेकर वर्णन किया जो सामान्यत अजेय माने जाते रहे हैं ऐसा दुर्योधन ने अपने वृद्ध सेनापति आचार्य द्रोण के उत्साह को बढ़ने के लिए किया. यह दुर्योधन का कूटनैतिक सूझ बूझ का परिचय देने वाला तरीका है . अर्थात पांडव पक्ष के अति सजग योद्धाओं के विषय में बताकर आचार्य के ह्रदय में अति सतर्कता का भाव भरना एवं अपने अजेय योद्धाओं के विषय में ही वर्णन करना वस्तुत सेनापति के मन में नव उत्साह का संचार करना |
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौम्दात्तिश्ताथैव च II
अर्थ : द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्राम जयी कृपाचार्य एवं वैसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं .
व्याख्या : पितामह भीष्म देय्वृत गंगा पुत्र भीष्म राजरिशी कोटि के हैं एवं भगवान परशुराम से धनुर्वेद की शिक्ष प्राप्त की है जो अमोघ एवं अचूक युद्ध विद्या में अग्रणी माने जाते हैं आचार्य द्रोण तो हैं ही धनुर्वेद के आचार्य महाबली कर्ण भी भगवान परशुराम के शिष्य हैं कृप आचार्य द्रोण का साला है अश्वत्थामा स्वयं महा योद्धा है विकर्ण ध्रतराष्ट्र का तीसरा पुत्र है सौमदत्त वहिको के राजासोमदत्त का पुत्र है दुर्योधन ने जानबूझ कर उन्हें योद्धाओं के बारे में नाम लेकर वर्णन किया जो सामान्यत अजेय माने जाते रहे हैं ऐसा दुर्योधन ने अपने वृद्ध सेनापति आचार्य द्रोण के उत्साह को बढ़ने के लिए किया. यह दुर्योधन का कूटनैतिक सूझ बूझ का परिचय देने वाला तरीका है . अर्थात पांडव पक्ष के अति सजग योद्धाओं के विषय में बताकर आचार्य के ह्रदय में अति सतर्कता का भाव भरना एवं अपने अजेय योद्धाओं के विषय में ही वर्णन करना वस्तुत सेनापति के मन में नव उत्साह का संचार करना |
shrimad bhagvad gita pratham addhyay....aage.....
अस्माकं तू विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम I
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान ब्रवीम ते II ७
अर्थ हे ब्राम्हण श्रेष्ठ ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिए I आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो जो सेनापति हैं , उनको बतलाता हूँ I
व्याख्या : पूर्व श्लोकों में दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को पांडु पक्ष के योद्धाओं के विषय में अवगत कराया I उन्हें भान कराया की पांडु पक्ष में एक से एक विकट योद्धा हैं I साथ ही उसने उपर्युक्त श्लोक के माद्ध्यम से कौरौ पक्ष के योद्धाओं एवं महा पराक्रमी तथा युद्ध में कौरुओं के पक्ष में प्राण देने वालेअथवा प्राण लेने वाले वीरों का भी वर्णन किया क्योंकि यह आवश्यक था की कहीं आचार्य द्रोण यह न समझ ले की कौरौ सेना में योद्धाओं की कमी है किसी राजा या राज पुत्र का उसके सेना पति का मनोबल बढ़ाये रखना कूटनैतिक दृष्टी से नितांत आवश्यक होता है
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान ब्रवीम ते II ७
अर्थ हे ब्राम्हण श्रेष्ठ ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिए I आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो जो सेनापति हैं , उनको बतलाता हूँ I
व्याख्या : पूर्व श्लोकों में दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को पांडु पक्ष के योद्धाओं के विषय में अवगत कराया I उन्हें भान कराया की पांडु पक्ष में एक से एक विकट योद्धा हैं I साथ ही उसने उपर्युक्त श्लोक के माद्ध्यम से कौरौ पक्ष के योद्धाओं एवं महा पराक्रमी तथा युद्ध में कौरुओं के पक्ष में प्राण देने वालेअथवा प्राण लेने वाले वीरों का भी वर्णन किया क्योंकि यह आवश्यक था की कहीं आचार्य द्रोण यह न समझ ले की कौरौ सेना में योद्धाओं की कमी है किसी राजा या राज पुत्र का उसके सेना पति का मनोबल बढ़ाये रखना कूटनैतिक दृष्टी से नितांत आवश्यक होता है
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