Saturday, July 3, 2010

shri madbhagvad gita prtham addhyay ...aage

अपर्याप्तं  तदस्माकं बलं भीस्माभिरक्षितम I
पर्याप्तं त्विद्मेसाम  बलम भीमाभिरक्षितम  II १०
अर्थ : हमारी शक्ति अपक्रिमेय है और हम सब पितामह भीष्म द्वारा रक्षित हैं जबकि पांडवों की शक्ति भली भांति संरक्षित होकर भी सीमित है
व्याख्या :स्वाभाविक रूप से अपने को बली मानने वाला  अपनी सेना की विशालता का वर्णन करने वाला ,पितामह की युद्ध कला में निपुणता तथा एवं उनके बल पर पूर्ण विश्वास करने वाला दुर्योधन पांडवों की सेना को कम तर आंक रहा है और उसे भीम द्वारा संरक्षित बता रहा है I पितामह भीष्म और भीम के बल के अंतर को आचार्य के संज्ञान में ला रहा  है दुर्योधन अभिमानी है बली है तथा पराक्रमी है वह कूटनैतिक  संवाद का महारथी है वह जानता है की वृद्ध आचार्य की मानसिक शक्ति कहीं क्म न हो जाये इसीलिए वह कुरु सेना को विशाल एवं अति शक्ति संपन्न बता रहा है वह कुरु सेना को दुर्भेद्य बता रहा है

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