Thursday, July 1, 2010

shrimad bhagvad gita pratham addhyay....aage.....

भवान भीश्मश्च  कर्णश्च क्रपश्च समितिंजय : I
अश्वत्थामा विकर्णश्च   सौम्दात्तिश्ताथैव च  II

अर्थ :  द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म   तथा कर्ण और संग्राम जयी  कृपाचार्य एवं  वैसे ही अश्वत्थामा  विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं .

व्याख्या : पितामह भीष्म देय्वृत  गंगा पुत्र भीष्म राजरिशी  कोटि के हैं एवं भगवान परशुराम से धनुर्वेद की शिक्ष प्राप्त की है जो अमोघ एवं अचूक युद्ध विद्या में अग्रणी माने जाते हैं आचार्य द्रोण तो हैं ही धनुर्वेद के आचार्य महाबली कर्ण भी भगवान परशुराम के शिष्य हैं कृप आचार्य द्रोण का साला है अश्वत्थामा स्वयं महा योद्धा है विकर्ण ध्रतराष्ट्र का  तीसरा पुत्र है सौमदत्त  वहिको के राजासोमदत्त का पुत्र है दुर्योधन  ने जानबूझ कर उन्हें योद्धाओं के बारे में नाम लेकर वर्णन किया जो सामान्यत अजेय माने जाते रहे हैं ऐसा दुर्योधन ने अपने वृद्ध सेनापति आचार्य  द्रोण के उत्साह को बढ़ने के लिए किया. यह दुर्योधन  का कूटनैतिक सूझ बूझ का परिचय देने वाला तरीका है .  अर्थात पांडव पक्ष के अति सजग योद्धाओं के विषय  में बताकर आचार्य  के ह्रदय  में अति सतर्कता का भाव भरना एवं अपने अजेय  योद्धाओं के विषय  में ही वर्णन करना वस्तुत सेनापति के मन में नव उत्साह का संचार करना |

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