श्लोक :
अथ चैनं नित्य जातं नित्यं वा मन्यसे मृतं ।
तथापि त्वम महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥ (२६)
अर्थ : किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो , तो भी हे महाबहो तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है ।
श्लोक ;
जातस्य ही ध्रुव मृत्युर्ध्र्वं जन्म मृतस्य च ।
तस्माद्परि हरये$ थे न त्वम शोचितु मर्हसि ॥ (२७)
अर्थ क्योकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है । इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने को योग्य नहीं है ।
श्लोक : अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्त मध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिवेदना ॥ (२८)
अर्थ : हे अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले है ,केवल बीच में ही प्रकट है ; फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है
श्लोक : आश्चर्यवत पश्यति कश्चिदेन
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य : ।
आश्चर्यवच्चैनमन्य : शृणोति
श्रुत्वाप्येनम वेद न चैव कश्चित ॥ (२९)
अर्थ : कोई एक महा पुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे भी दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा कोई दूसरा पुरुष ही आश्चर्य की भाति का भाँति सुनता है तो कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ।
श्लोक : देही नित्यमवध्यो$यं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वम शोचितु मर्हसि ॥ (३०)
अर्थ : हे अर्जुन ! यह आत्मा सबके शरीरो में सदा ही अवध्य है इस कारण सम्पूर्ण प्राणियो के लिए तू शोक करने योग्य नहीं है ।
अथ चैनं नित्य जातं नित्यं वा मन्यसे मृतं ।
तथापि त्वम महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥ (२६)
अर्थ : किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो , तो भी हे महाबहो तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है ।
श्लोक ;
जातस्य ही ध्रुव मृत्युर्ध्र्वं जन्म मृतस्य च ।
तस्माद्परि हरये$ थे न त्वम शोचितु मर्हसि ॥ (२७)
अर्थ क्योकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है । इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने को योग्य नहीं है ।
श्लोक : अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्त मध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिवेदना ॥ (२८)
अर्थ : हे अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले है ,केवल बीच में ही प्रकट है ; फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है
श्लोक : आश्चर्यवत पश्यति कश्चिदेन
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य : ।
आश्चर्यवच्चैनमन्य : शृणोति
श्रुत्वाप्येनम वेद न चैव कश्चित ॥ (२९)
अर्थ : कोई एक महा पुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे भी दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा कोई दूसरा पुरुष ही आश्चर्य की भाति का भाँति सुनता है तो कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ।
श्लोक : देही नित्यमवध्यो$यं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वम शोचितु मर्हसि ॥ (३०)
अर्थ : हे अर्जुन ! यह आत्मा सबके शरीरो में सदा ही अवध्य है इस कारण सम्पूर्ण प्राणियो के लिए तू शोक करने योग्य नहीं है ।
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