Sunday, March 25, 2012

shri mad bhagavadgita pratham addhaay se aage

श्लोक
भीष्म द्रोण प्रमुखत:  सर्वेसाम च महीक्षताम ..
उवाच पार्थ पश्यैतान सम्वेतान्कुरुनिती  ..     (२५)


अर्थ:
उसने भीष्म द्रोण  और सब राजाओं के सम्मुख खड़े होकर कहा की हे पार्थ इन  सब इकट्ठे खड़े कुरुओं को देखो

व्याख्या :
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन की आकांक्षा  के आधार पर उसके रथ को दोनों सेनाओं के बीच ला खडा कर दिया .
भगवान श्री हृषिकेश ये जानते थे की अर्जुन पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों ओर के योद्धाओं को निकट से देखना चाहता है. भगवान ने जोर देकर अर्जुन से कहा पार्थ इन कुरुओं को देखो जहां प्रथम पंक्ति के योद्धा के रूप में पिअतामेह भीष्म, द्रोणाचार्य आदि के साथ अनेक राजा भी विपक्ष में खड़े थे. श्री कृष्ण ने जोर देकर कुरु शब्द का प्रयोग किया.
यद्यपि रथ दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा किया तथापि प्रथमतः पाण्डव पक्ष के योद्धाओं की चर्चा नहीं की क्योंकि केशव  चाहते थे की अर्जुन पहले उन्हें देखे जिनके साथ उसे निर्णायक युद्ध करना है. इस तरह भगवान ये कहना चाहते हैं की अर्जुन यदि तुम्हे युद्ध ही करना है तो युद्ध  करो, भले ही यह तुम्हारे पालन - हार या गुरुओं अर्थात विद्या देनेवालों के प्रति युद्ध हो. इसे केवल एक ही नीति से जीता जा सकता है. वह है केवल युद्ध-
केवल पराक्रम. भले ही अपनों के साथ ही क्यों न करना पड़े. मानवता के आत्यंतिक हित के लिए युद्ध करना ही चाहिए यदि समझौते के सारे रास्ते बंद हो गए हों तो. 
 

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