ओह्म परमात्मने नमः
पंचाननं मरुत मतंग्गाजानाम नागान्तिकम पुंगव पन्न्गानाम
नागढ़िपारचित भासुर कर्नफूलम वाराणसी पुर पतिम भज विश्व नाथं
इस परम पवित्र ग्रन्थ कि अर्थ सहित व्याख्या करने के पूर्व देवाधिदेव महादेव एवं गौरी गणेश कि स्तुति करता हूँ. क्यों कि मैं अकिंचन अपने भावों एवं विचारों को बिना महादेव कि शरण में रह कर अपने आपको निरीह समझता हूँ. परम परात्पर अकारण करुना वरुनालय परब्रम्ह साकार विग्रह वासुदेव भगवान के श्री मुख से निस्रत वाणी का अपनी भाषा एवं भाव में वर्णन करने हेतु समस्त देवी देवताओं से प्रार्थना करता हूँ . मेरे इस प्रयास से यदि संसार का एक भी प्राणी लाभ ले पाया तो मैं उसका कर्जदार रहूँगा. मेरे मन में समानता, सदाचार, समाजवाद एवं विश्व में प्रचलित हर धर्म एवं संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव है तथापि जैसे बालक की एक ही माता होती है एवं एक ही पिता होता है इस आधार से यह रामकिशोर द्विवेदी सनातन धर्मावलम्बी वस्तुतः अपने मानव होने का धर्म निभा रहा है. संसार का वह प्रत्येक प्राणी जो हिंदी भाषा जानता हो इस ब्लॉग के माध्यम से मेरी आलोचना या समालोचना करने के लिए आमंत्रित है. चाहते हुए भी कुछा कठिन संस्कृत के शब्द या श्लोक इन्टरनेट पर हिंदी टाइपिंग कि अच्छी सुविधा न होने के कारन त्रुटियाँ हो सकती है चूंकि मैंने हिंदी में ही संपूर्ण सात सौ श्लोक लिखने एवं उनका शब्दार्थ तथा व्याख्या लिखने का मन बनाया है तो उस नाते राज भाषा धर्मं का भी निर्वाह हो जायेगा. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बिना राष्ट्र धर्म के निर्वाह के न तो वैयक्तिक धर्मं का निर्वाह संभव है और न ही मानव धर्म का निर्वाह कर पाना संभव है. अतः जय भारत, जय भारती कहते हुए राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गान एवं हिंदी राज भाषा (राष्ट्र भाषा होने की आशा में) का सम्मान करते हुए समस्त भारतीय भाषाओं एवं विश्व वांग्मय को भी मान देते हुए अगले ब्लॉग से अपना भाव रखने का प्रयास करूंगा.
परमात्मने नमः
Sunday, June 6, 2010
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I appreciate the step to elobrate the true meaning/ true sense of ishlok (couplet)written in sankrit language as sanskrit language in a language of layman.
ReplyDeleteC B Sharma