पश्यैताम पाण्डु पुत्रानामाचार्य महती चमूम I
ब्यूढाम द्रुपद पुत्रेण तव शिष्येण धीमताम II ३
अर्थ हे आचार्य पांडु पुत्रों की विशाल सेना को देखें जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य एवं द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से ब्यवस्थित किया
व्याख्या: इस श्लोक में द्रुपद पुत्रेण आया है, महाराजा द्रुपद एवं आचार्य द्रोण बचपन के मित्र थे I बाद में उन दोनों महा पुरुषों में सत्तामद एवं ज्ञान मद के कारण विवाद उत्पन्न हो गया जिस कारण उनमे एक दुसरे के प्रति आतंरिक वैर पनप गया द्रुपद राज ने महान धनुर्धर आचार्य से बदला लेने के कारण पुत्र काम यज्ञं कराया जिससे उन्हें द्रोपदी एवं द्रिस्त्द्युम्न प्राप्त हुए I ये पुत्र एवं पुत्री शिक्षा दीक्षा हेतु आचार्य द्रोण के आश्रम भेजे गए आचार्य ने बिना किसी भेदभाव के द्रिस्त्द्युम्न को समस्त धनुर्वेदीय रहस्यों से परिचित कराया एवं व्यूह रचना में निष्णात करा दिया वह व्यूह रचना में आचार्य के बाद सबसे अधिक कुशलता प्राप्त धनुर्धर था
अत : इस बात को द्रोण को स्मरण होना चाहिये की जो व्यूह पांडवों की सेना में बना है वह उसके शिष्य एवं परम शत्रु द्रुपद के पुत्र ने बनाया है यह वास्तव में दुर्योधन का कूटनैतिक सन्देश है अपने गुरु के लिए की कहीं गुरु शिष्य के मोह जाल में न फंस
जाये I अत : दुर्योधन ने उन्हेंअपने सेनापति होने के कर्तव्यों को स्मरण कराया एवं भावनाओं से तिरोहित होने दिया I
Thursday, June 24, 2010
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