Monday, May 9, 2016

                                                                      संजय उवाच

श्लोक :                                        एवमुक्त्वा हृषीकेशं  गुडाकेश : परन्तप ।
                                                   न योत्स्य इति  गोविंदमुक्तवा तूष्णीं बभूव ह ॥ ९
अर्थ :     संजयबोले हे राजन निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्री कृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार ,   युद्ध नहीं करूंगा यह स्पष्ट कह कर चुप होगये ।
श्लोक  :                                     तमुवाच ह्रषीकेश: प्रहसन्निव भारत         ।
                                                 सेन्योरुभयोरमद्ध्ये विशीदन्तमिदं  वच: ॥ १०
अर्थ : हे भरत वंशी धृतराष्ट्र ,  अंतर्यामी श्री कृष्ण महाराज  दोनों सेनाओं के बीच में  शोक करते हुए  उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले । 

व्याख्या : संजय ने ध्रतराष्ट्र से यह बताया की अर्जुन ने श्री कृष्ण से  युद्ध नहीं करूंगा ऐसा स्पष्ट बोल दिया  तब भगवान कृष्ण ने  शोक से युक्त अर्जुन को हँसते हुए यह वचन बोले । इसके बाद भगवान ११ से लेकर ३० श्लोको तक सांख्य योग

 वास्तव में कोेई  महान व्यक्ति  छोटे से बच्चे को  जो बार बार किसी काम को  ना कर रहा हो तथा हाथ  छिटक रहा हो ।  ऐसे बच्चे से मुस्करा कर कार्य करने के लिए कहे  क्योकि अगर  बच्चे से विशेष  कार्य कराना ही है  तब फिर उसे उसकी ताकत याद दिलाना पड़ेगी   और उसे सही राह पर लाना के लिएमुस्कराकर ही बात आगे बढ़ानी पड़ेगी होगी । 
श्री कृष्ण ने पहले नपुंसक न बन ऐसा कह कर  अर्जुन को डाटा  फिर परन्तप अर्थात महान तपस्वी कहकर उसका साहस बढ़ाया  बाद में हंस कर समझाने का कार्य किया । बात न सुनने पर पहले  डांटना  फिर उसकी प्रशंसा  करना  तथा बाद में हंसते हुए  समझाकर रास्ते पर लाने का महत्त्व पूर्ण कार्य श्री भगवान के द्वारा आरम्भ होता है 
श्लोक एक से दस तक श्री कृष्ण -अर्जुन केबीच तर्क-वितर्क ,   डांट  डपट  व कर्तव्य की याद दिलाना आदि उपक्रम चलता है  ।
इसके बाद भगवान ११ से लेकर ३० श्लोको तक सांख्य योग का पाठ पढ़ाएंगे गीता का सांख्य वास्तव में कपिल के सांख्य से अलग है यह सांख्य वास्तव में ज्ञान की पराकाष्ठा है --- 

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