श्रीभगवानुवाच
श्लोक अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्चभाषते
गतासूनगतासूूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता : ११
अर्थ : श्री भगवान बोले -- हे अर्जुन तू न शोक करने योग्य मन्युष्यों के लिए शोक करता है और पंडितो के से वचनो को कहता है ; परन्तु जिनके प्राण चले गए है उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए है उनके लिए भी पंडितजन शोक नहीं करते।
श्लोक : न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जना धिपा : ।
न चैव न भविष्याम : सर्वे वयमत: परम ॥ १२
अर्थ: न तो ऐसा ही है की मैं किसी काल में नहीं था।, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है की इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।
श्लोक : देहिनो$स्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं ज़रा ।
तथादेहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ १३
अर्थ : जैसे जीवात्मा की इस देह में बालक पण , जवानी और वृद्धावस्था होती है , वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता ।
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श्लोक अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्चभाषते
गतासूनगतासूूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता : ११
अर्थ : श्री भगवान बोले -- हे अर्जुन तू न शोक करने योग्य मन्युष्यों के लिए शोक करता है और पंडितो के से वचनो को कहता है ; परन्तु जिनके प्राण चले गए है उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए है उनके लिए भी पंडितजन शोक नहीं करते।
श्लोक : न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जना धिपा : ।
न चैव न भविष्याम : सर्वे वयमत: परम ॥ १२
अर्थ: न तो ऐसा ही है की मैं किसी काल में नहीं था।, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है की इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।
श्लोक : देहिनो$स्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं ज़रा ।
तथादेहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ १३
अर्थ : जैसे जीवात्मा की इस देह में बालक पण , जवानी और वृद्धावस्था होती है , वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता ।
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