अद्ध्याय द्वितीय ........
अर्जुन उवाच
श्लोक कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मदसूदन।
इषुभि प्रति मोहस्यामि पूजारहावरिसूदन ॥ ४
अर्थ : अर्जुन बोले - हे मधुसूदन मैं रणभूमि में किसप्रकार वाणो से भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध युद्ध करूंगा क्योकि हे अरिसूदन वे दोनों ही पूजनीय हैं ।
श्लोक : गुरून्हत्वा हि महानभावा -
छ्रेयो भोक्तुम् भैक्छ्यमपीहलोके ।
हत्वार्थ कामास्तु गुरुनिहैव
भुञ्जीय भोगान रूधिर प्रदिग्धान ॥ ५
अर्थ : इसलिए इन महानुभाव गुरुजनो को न मार कर मई इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याण कारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनो को मार कर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ काम रूप भोगों को ही तो भोगूंगा ।
श्लोक : न चैतद्विद्याः कतरन्नोगरीयो
यद्वाजयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम -
स्तेवस्थिता :प्रमुखे धार्तराष्ट्रा : ॥ ६
अर्थ : हम यह भी नहीं जानते की हमारेलिएयुद्ध करना और न करना इन दोनों मेसे कौन सा कर्तव्य है अथवा हम ये भी नहीं जानते की उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । जिनको मार कर हम जीना भी नहीं चाहते , वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं ।
अर्जुन उवाच
श्लोक कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मदसूदन।
इषुभि प्रति मोहस्यामि पूजारहावरिसूदन ॥ ४
अर्थ : अर्जुन बोले - हे मधुसूदन मैं रणभूमि में किसप्रकार वाणो से भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध युद्ध करूंगा क्योकि हे अरिसूदन वे दोनों ही पूजनीय हैं ।
श्लोक : गुरून्हत्वा हि महानभावा -
छ्रेयो भोक्तुम् भैक्छ्यमपीहलोके ।
हत्वार्थ कामास्तु गुरुनिहैव
भुञ्जीय भोगान रूधिर प्रदिग्धान ॥ ५
अर्थ : इसलिए इन महानुभाव गुरुजनो को न मार कर मई इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याण कारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनो को मार कर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ काम रूप भोगों को ही तो भोगूंगा ।
श्लोक : न चैतद्विद्याः कतरन्नोगरीयो
यद्वाजयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम -
स्तेवस्थिता :प्रमुखे धार्तराष्ट्रा : ॥ ६
अर्थ : हम यह भी नहीं जानते की हमारेलिएयुद्ध करना और न करना इन दोनों मेसे कौन सा कर्तव्य है अथवा हम ये भी नहीं जानते की उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । जिनको मार कर हम जीना भी नहीं चाहते , वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं ।
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