स घोषो धार्त्रराश्त्रानाम हृदयानि व्यदारयत I
नभश्च प्रथिवीम चैव तुमुलो व्यनुनादयन II १९
अर्थ : और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्ष वालो के ह्रदय विदीर्ण कर दिए I
व्याख्या : उपर्युक्त श्लोक १२ से १९ तक
ऊपर लिखे श्लोको में शंखनाद एवं अन्य रण भेरियों का उच्च नाद युद्ध भूमि में गुन्जाय मान होता है पितामह भीष्म ने दुर्योधन के मन में यह भाव पैदा करने के लिए कि उन्होंने ने युद्ध की पूरी तयारी के साथ कमान संभाल ली है एवं सेनापति के रूप में कुरु सेना की ओर से एक तरह से युद्ध भूमि में स्वयं सेनापति के रूप में उपस्थति का उल्लेख कियाI उसी समय कुरुसेना की ओर से बहुत सारे योद्धाओं के तुमुल तुरही सिंगी आदि उच्च नाद उत्पन्न करने वाले बाजे बज उठे तत्पश्चात अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर अर्जुन एवं सारथी के रूप में श्री कृष्ण ने अपने अपने शंख बजाये एवं युधिष्ठिर समेत समस्त पांडवों ने शख बजाकर पितामह के सिंह नाद का समवेत स्वर से शंख नाद के तीव्र घोष द्वारा प्रति उत्तर दिया उसके पश्चात पांडु सेना के सबसे जाने माने योद्धाओं ने भी शंख ध्वनि की Iयहाँ द्रस्तव्य है की पांडु सेना क़ी समवेत शंख ध्वनि कौरवों के ह्रदय को दहलाने का कारण बनी जबकि भीष्म का शंखनाद मात्र दुर्योधन के मन में पितामह द्वारा युद्ध करने की आशा का संचार उत्पन्न करने का कारण मात्र बना I
यहाँ शंख के नामों का उपरुक्त श्लोकों में केवल मधुसूदन भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांच पांडवों का नाम था शेष किसी योद्धा के द्वारा बजाये गए शंख का नाम उल्लेख में नहीं आया है I
Wednesday, July 7, 2010
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From the gist it seems that Bhisma was not at all fully devoted to his party (Dooryodhan) as he played the Shankh only for Dooryodhan with the intention of not only to realize Dooryodhan that he is with him in war, but he played the Shankh with that intensity with which Pandavas do not get scared with his power. This also shows Bhisma’s true feelings for Pandava’s and indirect support to them in the war.
ReplyDeleteShould we consider this act of Bhisma as non loyal to Bharat Bhumi and ignorance towards the pledge to protect it till the last breath??